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चाय

उषा की रश्मि
जब घोलती है चाय में चुस्ती,
शुरू करते है दिन हम अपना |
लेकिन शाम आते-आते
आन पड़ती है फिर एक चाय की जरुरत;
घोली हो जिसमे
संध्या ने कोई अलौकिकता
हमारे तन में
नये प्राण डालने के लिए |

~ Bhargav Patel (अनवरत)

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