नज़रो में हो कंकड़ तो,
रानाई चुभती है..
भरी बज़्म में चस्पा
तन्हाई चुभती है..
जिस रिन्द को मयस्सर हो
बस कफ़स की फर्श..
उसकी आँखों मे आसमान की
ऊंचाई चुभती है..
जो जिस्म सतह पे खेल के,
हार गए खुद से..
उन्हें रूह की
गहराई चुभती है..
जिन सफहो को है आदत,
पानी से लिखे हर्फ़ों की..
उन्हें ये रंगीन..
रोशनाई चुभती है..
तन्हा रहने की तलब..
इस कदर है सबको..
अब परछाई को भी परछाई
चुभती है।।