चेहरे के हर भाव पढ़ने लगती है,
जब कोई लड़की बढ़ने लगती है,
कहती कुछ नहीं मुख से फिरभी,
चुप्पी आँखों में गढ़ने लगती है,
खेल खिलौनों संग खेलने वाली,
रिश्तों के अंदर ही कुढ़ने लगती है,
लेकर अपने स्वप्नों को संग में,
जीवन की सीढ़ी चढ़ने लगती है।।
राही (अंजाना)