ठहरी हुई है वो शाम इधर ही,
जिन शाम हम मिले थे ।
इन शाम की खुशबू से ,
महकता रहता पहर आठो ।
वो स्वर्ग ही क्या जिनमें प्यार न हो।
वो प्यार ही क्या जिनमें हम न हो।
छोटी सी बात

ठहरी हुई है वो शाम इधर ही,
जिन शाम हम मिले थे ।
इन शाम की खुशबू से ,
महकता रहता पहर आठो ।
वो स्वर्ग ही क्या जिनमें प्यार न हो।
वो प्यार ही क्या जिनमें हम न हो।