दुबले-पतले,गोरे-काले।
तन पर कपड़े जैसे जाले।।
दिख जाते हैं।
नुक्कड़ पर,दुकानों पर।
ढाबों पर,निर्माणधीर मकानों पर।।
देश में इन की पूरी फौज।
बिना लक्ष्य ये फिरते हैं यहां वहां हर रोज़।।
ज़िन्दगी के पाठ ये बचपन में सीख लेते हैं।
कल की इन्हें फिकर नहीं ये आज में जीते हैं।।
कुछ अनाथ हैं।
कुछ के पास परिवार का साथ है।।
नन्ही सी उम्र में ये परेशान,मजबूर हैं।
देश डिजिटल हो रहा है,ये एनालॉग से भी दूर हैं।।
इनके लिए,ज़िन्दगी एक कठिन सी जंग है।
दिवाली अँधेरी और होली बेरंग है।।
पारिवारिक बोझ ने इनकी आशाओं को धो दिया।
दुनियादारी की होड़ में अपना बचपन युहीं खो दिया।।
ये बेचारे बेबस गुमसुम से रहते हैं।
और इस देश के लोग इन्हें छोटू कहते हैं।।
हमारी से दूर इन्होंने अपनी दुनिया संजोई है।
सपने ये देखते नहीं,उम्मीदें इनकी सोई हैं।।
इतना सब सहकर भी इन्होंने
हिम्मत अपनी खोई नहीं।
मेरी नज़र में इन छोटुओं से बड़ा
पूरी दुनिया में कोई नहीं।।