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छोड़ खिड़की दरवाजे अब मुँह पर ताले लगते हैं

छोड़ खिड़की दरवाजे अब मुँह पर ताले लगते हैं,
जहाँ तहाँ भी देखो अब तुम चुप्पी के गाले लगते हैं,

कदम कदम साथ निभाने के अक्सर वादे करते थे,
आज सभी के ही मानो जैसे पाँव में छाले लगते हैं,

कैद हुए हैं शब्द हजारों सब अपनी ही बस्ती में,
होठों पर ही देखो अब तो मकड़ी के जाले लगते हैं।।

राही अंजाना

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