जब कर्मपथ की मंज़िल को
दो साथ चले दो साथ बढ़े
कोई जीत गया कोई हार गया
जो जीत गया उसने नाम बुलंद किया
हारा उसने भी तो खूब प्रबंध किया
त्याग समर्पण के बाद जो पा ना ही सका अपना मुकाम
जो हार गया उसके जज़्बे को सलाम……
दिन दिये और सौंपी रातें
दरकिनार कर स्वजनों की बातें
जो बढ़ा चला एक ओर सदा
एक परिणाम ने खूब प्रपंच रचा
टूटी सम्मान की आशा ने
बिखरी निज सफल पिपासा ने
दर्द उसका भी व्यक्त किया
हा ! रिक्त किया हा! मुक्त किया
चल पथिक तुझे तो चलना ही है
ढलकर उगना और बढ़ना ही है…..