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जब कोई धर्म साज़िशों का पुलिंदा बन जाता है

जब कोई धर्म साज़िशों का पुलिंदा बन जाता है
तब धर्म केवल धंधा बन जाता है

शोषण और लूटपाट ही दलालों का एजेंडा होता है
इंसानियत मर जाती है और खोखला धर्म ही केवल ज़िंदा होता है

देवी पूजी जाती हैं और स्त्रियों का शोषण होता है
छुआ-छूत ,झूठ और पाखंड का दृश्य बड़ा भीषण होता है

ईश्वर के बहाने
आदमी को लतियाया जाता है
पशु पूजे जाते हैं
और इंसानो को मरवाया जाता है

पाप ,पुण्य बन जाता है
शरीफ़ होना संताप हो जाता है
आग लगी रहती है समाज में
विवेकहीन होना आशीर्वाद बन जाता है ।

तेज

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