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ज़िन्दगी की तारीख

ज़िन्दगी की तारीख नहीं होती_

वरना हर तारीख पर फ़क़त ज़ख़्मों का हिसाब होता शाद-ए-लम्हें कहाँ खर्च हो गये कभी हिसाब ही नहीं मिलता_
-PRAGYA-

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