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“ज़िन्दगी”

ज़िन्दगी मोम सी

जलती रही

पिघलती रही

हर पल

इक नया रूप लिए

बनती रही

बिखरती रही

नयी अनुभूति सी

हर एक क्षण

हर दिशा में

एक जिजिविषा संग

जिन्दगी बदलती रही

निखरती  रही

एक आकार बना लिया

जिन्दगी ने अब

मोम की तरह

क्षय होकर

स्वयं को नया रूप दिया

और योंही जलती रही

ढलती रही

मोम बह गया अब

जिन्दगी भी  योंही थम गयी

 

 

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