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जिंदगी की पहेली

जिंदगी की पहेली कब तक हमे रुलाएगी,
हम परवाने हे मौत समा अब तो यह समझ जायेगी ।

रोकने की उम्मीदों में, जिंदगी ने प्रयत्न है कई किए,
दुविधा और दुखो की बरसात में है हम जीए ,
छत में से टपकते पानी में आंसू हमने छिपाए है।
पर ना ये जिंदगी मुझे न कभी जान पाएगी ,
जिंदगी की पहेली कब तक हमे रुलाएगी,
हम परवाने हे मौत समा यह अब तो समझ जायेगी ।

यह जिंदगी भी अनभिज्ञ हैं सूर्य छिपता बादल भय से , क्या कभी सरिता रुकी है, बांध और, वन पर्वतों से।
चरण अंगद ने रखा है, आ उसे कोई हटाए ,
दहकता ज्वालामुखी यह आ उसे कोई बुझाए
पर ना ये जिंदगी मुझे न कभी जान पाएगी ,
जिंदगी की पहेली कब तक हमे रुलाएगी,
हम परवाने हे मौत समा यह अब तो समझ जायेगी ।

हम न रुकने को चले हैं, सूर्य के यदि पुत्र हैं तो,
हम न हटने को चले हैं, सरित की यदि प्रेरणा तो,
धनुष से जो छूटा बाण कब मग में ठहरता है,
देखते ही देखते लक्ष्य को वेध करता है।
जिंदगी की पहेली कब तक हमे रुलाएगी,
हम परवाने हे मौत समा यह अब तो समझ जायेगी ।

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