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जिंदगी ने फिर रौशनी दी है

बचपन की नादानियां
नसीब में अब हैं कहां
वो मस्ती थी तभी तक
दोस्त थे जब संग वहां

कैसे तुम्हें बताऊं मेरे यार
कितनी खुशी तूने मुझे दी है
बुझते हुए चिराग को जैसे
जिंदगी ने फिर रौशनी दी है

कितनी मेहनत की थी तुमने
मुझसे जीतने की यार तब
जीतने का जुनून था या रब
मुझे सवार हुआ कैसे जब

अब अगर तूं खेले मुझसे
जीत न कभी पाऊंगा मैं
अपने अजीज को ही हारता
कैसे ऐसे देख पाऊंगा मैं

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