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जिन्दगी उम्र भर की सहेली है

जिन्दगी उम्र भर की सहेली है
एक उलझी हुई पहेली है
दरिया है ये समंदर की पूछो न तुम
फिर भी प्यासी है ये अकेली है
कहो चाहे इसको काँटो का वन
कर सको तो करो ये पार तुम वन
रहना तो है इसके संग हरदम…
कहाँ जाओगे छोड़ इसको तुम
ये राग है उस रागों की रागिनी
जो तपते है होठों पे ले दामिनी
ये मासूम है और चँचल भी ये..
जो चमकती है बनके ये चाँदनी
ये करुणा है प्रिय और प्रितम भी है
रहना साथ है इसके ये गम भी है
ये सरल है सहज कठिन भी है…
ये बहारों के हँसते मौसम भी है.

मनोज कुमार यकता

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