जिस तरह मुझ पे तोहमत लगा रही है वो
शायद मेरे किरदार से वाक़िफ़ नहीं है वो
झूठों के इस बाज़ार में मुंसिफ भी बैठ कर
मुझ से कहा के मैं ग़लत, और सही है वो
मैं ने बग़ावत कर दी है चाँद के लिए
उस को जाके बता दो जहाँ कहीं है वो
जल्वा गर है चाँद का तो मैं भी कम नहीं
कल या परसों सुना था के ये कह रही है वो
जिस ने सर-ए-बाज़ार मुझे ख़म कर दिया
जो ताज पहने बैठा है, हाँ यही है वो