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जीवन का आधार

लिपट कर एक बेल
एक पेड़ को,आधार पा गई थी
बहुत खुश थी सुंदर फूल उगाती थी
और गिराती थी जैसे पुष्प वर्षा हो
वो समझती थी की अब
आसान सफर है जिंदगी का
पेड़ की जड़ें भी गहरी है
और विशाल भी है ये
और मुझे इसने अपने चारों और
लिपटने की मौन अनुमति दे दी है
पर नियति और नीयत …
किसका बस चलता है
पेड़ का पालक मर गया
बेटे आये घर का बंटवारा हुआ
पेड़ बिच में आ रहा था
बोले काट दो
आरी चली कुल्हाड़ी चली
बेल बहुत परेशां थी
आज उसका आधार कट रहा था
उसका प्यार कट रहा था
बहुत सहने के बाद पेड़
लहराकर गिरा
पर बेल ने अपनी असीम ताकत लगा दी
पेड़ को गिरने से रोकने को
पर कुछ देर हवा में झूलने के बाद
पेड़ गिर पड़ा
और गिर पड़ी उसके उपर
वो बेल भी दोनों निष्प्राण थे
दोनों सूख गए पर सूखी बेल आज भी
लिपटी पड़ी है उस
बेजान पेड़ से….
?? जयहिंद ??

प्रस्तुति – रीता जयहिंद

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