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जीवन चक्र

क्या है जीवन !!
सोचो तो उलझ सी जाती हूं ।
जितना सुलझाना चाहती हूं ,
ओर -छोर नहीं पा पाती हूं।
बालक का जन्म,
घर में रौनक, घर किलकारियों से गूंज मान।
नटखट सी शरारते, क्या यही है जीने का सुख??
बालक हुआ किशोर,
मन जानने को बेताब,बेकल।
हर चीज में है उत्सुकता संसार जानने का मन ।
किशोर से युवा हुए उल्लास से भरा ये मन,
हर मुश्किल से मुश्किल को जीत ही लेने की लगन।
युवा से अधेड़ हुए जीवन है चुनौतियों भरा ,
कुछ गम भी यहां हैं अभी,
कुछ खुशियां भी बाकी अभी। बोझ के तले दबा,
थका हुआ इंसान यहां ।
पीछे जो जवानी बीत चली,
खोने का बड़ा सदमा है यहां ।
लो देखो बुढ़ापा भी आ ही गया, क्या खोया क्या पाया हमने।
तिनके तिनके जोड़ जोड़ कर जो आशियाना बनाया हमने उसकी बंटवारे भी देख लिए बच्चे बंजारे भी देख लिए ।अपने बेगाने भी देख लिए ,बस ऊब चला मन जीवन से,
फिर भी प्यारा है यह जीवन ,
दिल चाहता है अभी जी ले कुछ ।
शायद मिल जाए सच्चा सुख। मन उलझा ही रहता जग चक्र में,
डूब गया एक दिन मृत्यु भंवर में।
निमिषा सिंघल

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