Site icon Saavan

झाँसी की रानी

थर-थर कॉंप उठी थी धरती,
रूह थम गई थी अंग्रेजों की।
ऐसी थी वो रानी लक्ष्मी,
अपनी झाॅंसी के वीरों की।

जन्मी जब प्रकृति ने भी शीश झुकाया था,
माथे पर तेज देख उसके हर व्यक्ति आश्चर्य में आया था।

सब में थी होशियार बहुत वो,
मनु प्यार से कहते थे।
विदुषी थी धर्म में अपने,
रूप में कमल पुष्प से थे।

धन्य वो मोरोपंत और भागीरथी बाई थी,
जिनके यहॉं जन्मी रानी लक्ष्मीबाई थी।

चलती थी जब वो,
हवा चरण छू जाती थी।
धरती मॉं भी उसे अपनी बेटी सोच,
खुश हो जाती थी।

व्याही गंगाधर राव संग,
उसने अपना हर कर्तव्य निभाया था।
हर स्त्री को आत्म व भूमि रक्षा,
के लिए निपुण बनाया था।

आखिरी सॉंसे वो अपनी इस जहॉं के नाम कर गई,
देश हो आजाद ये चिंगारी लिए मर गई।

आजादी की गूॅंज तेरे नाम से ही उठती है,
तू अमर है हमारे दिलों में रानी दिल की धड़कन ये बोलती है।

Exit mobile version