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टूटे अल्फ़ाज़ों को

टूटे अल्फ़ाज़ों को  नसीहत की जरूरत क्या
 बिखरे ख्वाबों को किस्मत की जरूरत क्या

  जो बिक गया खुद ही  सरेआम बाज़ारों में
 फिर   इंसान की कीमत की जरूरत क्या

  हर इक शै का मुक़द्दर जब मुक़र्रर है
  लहूँ में लिपटी वसीयत की जरूरत क्या

 मैंने खुद ही जो इलज़ाम उठा रखे थे
फिर ज़माने को  हक़ीक़त की जरूरत क्या

                                 राजेश’अरमान’

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