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ठिठोली

[बुरा न मानो होली है ….. शुभकामनाओं सहित ]

आया जोबना पे कैसा उभार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा…र दैया ।।
पूनम के चांद–सा रूप खिला रे !
क़दरदान कोई न यार मिला रे !!
छलक—छलक जाए हंसी
होठों—–पे-—प्यास—बसी
नैनों का निराला व्यापार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा..र दैया ।।

गोरी सम्हाले रूप ; बिखर-बिखर जाए रे !
हूक उठे जियरा में -– होंठों पे हाय , रे !!
भंवरे बेचैन हैं ; मधु—पान को
भटक रहे गली–गली कुर्बान हो
इश्क़ बिना हुस्न तो बेकार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा..र दैया ।।

बची–बची फिरती है ; तीरे–नज़र से
कोठे से झांके—-कभी नीचे उतर के
कई दिल कदमों में ; उसके पड़े हैं,
आया नहीं–नैन उसके; जिससे लड़े हैं
उम्र से भी लम्बा इन्तज़ार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा..र दैया ।।

इठलाती–बलखाती चलती है—रूकती है
जोबना के भार लदी बार–बार झुकती है
अंगड़ाई ले ले तो ; बिजली चमक जाए
फागुन में पलास–सी ; गोरी ग़मक जाए
देखे करके जतन भी हज़ार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा..र दैया ।।

कसी–कसी चोली है , ढीला—ढाला लंहगा है
हुस्न बे–मिसाल उसका ; इश्क बड़ा मंहगा है
हाय—हाय चारों तरफ कैसी तबाही है
गली–गली मजनूं हैं;शामत सी आई है
करे वो किस–किसका ऐतबार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा….र दैया ।।

सागर की मौजों सी इठलाती हाय राम !
रस बरसे गोरिया के रंग-ढंग से अविराम
फूटे बसंत जैसे अंग—–अंग से
टूटते कग़ार; कपड़े तंग–तंग से
इसको है समझाना बेकार दैया ।
गोरी कैसे सम्हालेगी भा..र दैया ।।

 

 

 

 

 

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