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ठेस लगती है

जरूरत पे ली गई क़िस्त की कीमत, जान देकर जब किसी को चुकानी पड़े,

बह रहे यूँही जल को बचाने की खातिर किसी को, नल पर भी जब ताले लगाने पड़े,

प्यास पानी की हो जब बुझानी किसी को, तो चन्द बूंदों के पैसे चुकाने पड़े,

ठेस लगती है मन के उजालों को तब, जब रात अँधेरे में किसीको बितानी पड़े,

बिखर जाते हैं ख्वाब टूट कर धरती पर जब किसीको, फिर से घोंसले जब बनाने पड़े,

आँखें हो जाती हैं नम यकीनन सुनो जब किसी को, बात दिल की ज़ुबाँ से बतानी पड़े॥

राही (अंजाना)

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