अनुकूल वातावरण
मुश्किल से मिलता है
या तो स्वयं ढलना पड़ता है
या उसे अपने अनुसार
ढालना पड़ता है।
कर्म किए बिना
कुछ नहीं होता है
कर्म के बावजूद परिणाम में
ईश्वर की इच्छा को ही
मानना पड़ता है।
आग जलाने को
माचिस को रगड़ना ही पड़ता है
भाग जगाने को
परिश्रम करना ही पड़ता है।