हर पहर गुज़र जाता हैं
छूकर मुझे एक अन्जाना सा_
हम ज़िन्दगी थामकर तेरे ही
ख्वाबों को तराशते रहते हैं_
तु अन्जान सही मुझसे
ज़िंदा हैं पर साँसे मेरी ही तुझसे_
तुझे भूला सकुं पास
वो मेरे दिल नहीं_
माना तु ज़िन्दगी हैं मेरी
मगर ज़िन्दगी में मेरी हासिल नहीं_
-PRAGYA-