क्यूँ हम कृतघ्न ऐसे, मूढ़ बने पङे हैं
एक वीरान्गना के कृत्यों को भूल बैठे हैं
कोई तो होता, थोङा सा भी तस्कीन देता
उनके साथ खङा हो उन्हे तसलीम देता ।
तस्कीन- ढाढस
तसलीम- अभिवादन
क्यूँ हम कृतघ्न ऐसे, मूढ़ बने पङे हैं
एक वीरान्गना के कृत्यों को भूल बैठे हैं
कोई तो होता, थोङा सा भी तस्कीन देता
उनके साथ खङा हो उन्हे तसलीम देता ।
तस्कीन- ढाढस
तसलीम- अभिवादन