तिरंगे का रंग जब सर चढ़ता है।
बेजान शख्स भी उठ पड़ता है।
झुकाने की औकात नहीं किसी की,
दुश्मन लाख अपनी एड़ी रगड़ता है।
केसरिया रंग बांध अपने सर पर,
जवान जब सरहद पर लड़ता है।
श्वेत रंग दिलों में जो धारण किया,
शांति का पाठ दुनिया में पढ़ता है।
हरे रंग की चादर से लिपटी धरती,
हरित क्रांति किसान पसीने से गढ़ता है।
अशोक चक्र बांध अपने रथ पे ‘देव’,
मेरा भारत प्रति पल आगे बढ़ता है।
देवेश साखरे ‘देव’