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तुमने बरसाया उजाला

हम अंधेरों से झगड़ते फिर रहे थे दर-ब-दर ।
तुमने बरसाया उजाला हो गए हम तर-ब-तर।

मुस्कुराए तो अमावस की उदासी खो गई ।
साथ आए तुम तो मेरी पूर्णमासी हो गई ।
तुम न थे तो था जमाने से बहुत शिकवा गिला ।
तुम मिले तो हाथ थामे है खुशी का काफिला ।

मन मिले तो मान लीं हमने तुम्हारी मर्जियाँ ।
मार दीं एक दूसरे के वास्ते खुदगर्ज़ियाँ।
प्यार में मर कर मिला है प्यार करने का मजा।
यूँ मरे तो जी रहे हैं तुम पे मरने का मजा ।

यों निभाते रहे हम दस्तूर ए उल्फत उम्र भर।
प्यार के आगोश में सिमटे कभी तो गए बिखर।

संजय नारायण

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