तुमसे टकराकर मैं हर पल बिखर जाती हूँ,
मैं बूंद हर बार मगर जिद्दी पर उतर आती हूँ,
सिलसिला रुकता नहीं मैं थमती नहीं कहती हूँ,
के आसमाँ से धरती को मैं भिगाने चली आती हूँ।।
राही (अंजाना)
तुमसे टकराकर मैं हर पल बिखर जाती हूँ,
मैं बूंद हर बार मगर जिद्दी पर उतर आती हूँ,
सिलसिला रुकता नहीं मैं थमती नहीं कहती हूँ,
के आसमाँ से धरती को मैं भिगाने चली आती हूँ।।
राही (अंजाना)