Site icon Saavan

तुम्हारी याद

क्यों रूठे हो तुम हमसे…  ?
ना तुम याद आते हो
ना तुम्हारी याद आती है

जिक्र जो करूँ तुम्हारा तो
ये बैरन हवा
दिल के पन्ने पलट कर चली जाती है

छाया तेरी जुल्फों की मांगू तो
ये तपती दुपहेरी
मेरे चेहरे को जला जाती है

खुद की वफा साबित करु तो
मेरे सीने की धड़कन ही
मुझे बेवफा बतलाती है

मुलाकात तो होती है रास्तों पर
मैं नज़रें झुका लेता हूँ
वो नज़रें चुरा लेती है

भूले नहीं हम दोनों अभी तक
मैं हँस देता हूँ
वो बदले में मुस्कुरा देती है

मुझको लगता है अभी तक
कि उसकी भी कोई
आखिरी ख्वाहिश बाकी है

मैं पलट कर देखता हूँ तो
वो अपने लबों पर
कोई बात छिपाती है
………………….
अनूप हसनपुरी

Exit mobile version