Site icon Saavan

तुम्हारे हाथ

नदियाँ- सागर, सहरा- पहाड़, पानी-प्यास,
सूखा- बरसात, तितली-फूल, छाया- धूप
पंछी- आकाश, जंगल- उजाड़
सबकी पीड़ाओं को
आश्रय दिया है तुम्हारे हाथों ने

कहो प्रेम!
मेरे विस्थापित अश्रु
अछूते क्यों हैं अब तक तुम्हारे हाथों से
मेरी देह की निष्प्राण होती संवेदनाएँ
प्रतीक्षा कर रही हैं तुम्हारे स्पर्श की संजीवनी की

मेरे लिए सबसे सुंदर दुनिया
बसेगी तुम्हारी हथेलियों की परिधि के बीच
और सबसे सुंदर अंत होगा
तुम्हारी लकीरों में ख़ुद को तलाशते हुए मिट जाना

एक अनवरत नीरवता
जो बसी है तुम्हारे और मेरे बीच
जब भी खुले मेरे होंठ उसे भंग करने की कोशिश में
उन्हें रोक दिया तुम्हारी उँगलियों की अदृश्य थाप ने

मग़र एक दिन
मैं स्वर दूँगी इस नीरवता को
चूमकर तुम्हारी गर्म हथेलियों को..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(29/05/2021)

Exit mobile version