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तुम्हे मालूम हो ..

तुम्हे मालूम हो …
कुछ बाकी सा रह गया है तुम्हारे – मेरे दरम्यान…
जिसे मैं बहुत कोशिश करने पर भी शब्द नहीं दे पाता,
बस यूँही कभी महसूस कर लिया करता हूँ अकेले में,
गोयाकि,
कुछ फुसफुसाहटें,
कुछ पहली बारिशें,
कुछ अधपके से तुम्हरे साथ देखे ख्वाब,
कुछ तुम्हारी सी छुअन,
कुछ चुम्बन,
कुछ अकेली-अकेली सी ढीठ शामें,
कुछ आँखों-आँखों में काटी लम्बी रातें,
कुछ करीने से सहेजे हुए तुम्हारे लैटर,
और कुछ जिंदगी की भाग-दौड़ में भुला दी गयी यादें,
कुछ-कुछ मासूमियत, कुछ-कुछ मुस्कुराहटें,
कुछ-कुछ सावन, कुछ-कुछ चंदा !

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