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तुम कदम को रोकना मत

परिश्रम पथ पर कष्ट हैं, उनसे नहीं डरना तुम्हें,
कंटकों को रौंधना है, लक्ष्य पाना है तुम्हें।
विघ्न-बाधाएं अनेकों राह में आती रहेंगी,
तोड़ने उत्साह को कुछ अड़चनें आती रहेंगी।
कर निरुत्साहित तुम्हें निज मार्ग से भटकायेंगे,
बोल मीठा पीठ पीछे काम को अटकायेंगे।
दर्द में देखकर जो बहायेंगे दिखाने अश्रुजल,
वो तुम्हारे उन्नयन पर कुछ अधिक होंगे विकल।
इन सभी के बीच अपने तुम कदम को रोकना मत,
बढ़ते रहना, चलते रहना, और कुछ सोचना मत।
———– डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
(काव्यगत सौंदर्य में हरिगीतिका छन्दबद्ध पंक्तियों का समावेश किया गया है।)

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