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तुम नदिया सी

तुम नदिया सी. . ..
मैं वृक्ष हरा..
तुम जलधारा,
मैं तरस रहा।
तू मस्त मगन लहराती सी,
बहती जाती इठलाती सी।
गहरी कत्थई सी,
आंखों में
अपना ही अक्स ढूंढता हूं ।
खुद को ना पाकर ,
आंखों में
विचलित सा
मन को पाता हूं
इक खलिश सी दिल में दौड़ती है,
जब पत्थर सा तुम्हें पाता हूं ।

निमिषा सिंघल

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