वाह रे कुदरत तेरा भी खेल अजीब।
मिलाकर जुदा किया कैसा है नसीब।
जब सख्त जरूरत होती है तुम्हारी,
तब तुम होती नहीं हो, मेरे करीब।
सब कुछ है पास मेरे, पर तुम नहीं,
महसूस होता है, मैं कितना हूं गरीब।
या खुदा, ये इल्तज़ा करता है ‘देव’,
वस्ले-सनम की सुझाओं कोई तरकीब।
देवेश साखरे ‘देव’