तू कांच का टुकड़ा है मैं तेरी टूटी तकदीर,
तू फटा हुआ कागज मैं नाव बदनसीब।
तू रेल सी चलती है और मैं वक्त हूँ ठहरा हुआ,
तू तीखे बोल बोलती है पर मैं कान से बहरा हुआ।
ऐ जिन्दगी! तू क्या है धूप या छांव
मैं आज तक ना समझ सका….!!
तू कांच का टुकड़ा है मैं तेरी टूटी तकदीर,
तू फटा हुआ कागज मैं नाव बदनसीब।
तू रेल सी चलती है और मैं वक्त हूँ ठहरा हुआ,
तू तीखे बोल बोलती है पर मैं कान से बहरा हुआ।
ऐ जिन्दगी! तू क्या है धूप या छांव
मैं आज तक ना समझ सका….!!