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तेज भागती दौड़ती ज़िंदगी

तेज भागती दौड़ती ज़िंदगी
कुछ थक सा गया है इंसान
अंदर से कुछ -कुछ
एक धावक की भी दौड़ने की
एक सीमा होती है
जहा पहुंचकर वो विजेता होता है
पर इस ज़िंदगी की दौड़
का कोई ओर-छोर नहीं है
बस दौड़ते रहो
न कोई सीमा
न कभी विजेता
न कोई विराम
बस एक प्रतियोगी
राजेश ‘अरमान’

 

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