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तेरी याद आई और मेरा रोजा टूट गया

ज़िंदगी मुझसे मैं ज़िन्दगी से ऊब गया
रख के जहन में तुझे , मैं तुझे भूल गया !!

वो शहर वो गली वो रास्ते सब वही पे है
लेकिन छोड़ में मुझे तनहा वो दूर गया !!

समुन्दर तमाशा , मौत का देखता रहा
मैं सहरा की आवारा मौजो में डुब गया !!

भीतर की ख़ामोशी में कैद थे , सन्नाटे
आह भरी तो सारा हाले-दिल खुल गया !!

खैंच – खैंच के आहे दम भर रही है साँसे
काँटा जैसे कोई रूह के भीतर चुभ गया !!

रोते रोते लिखा था इक अशआर में तुझे
तहरीर यूँ की यूँ रह गई , नाम धुल गया !!

हादसा अब के रमजान फिर से वही हुआ
तेरी याद आई और मेरा रोजा टूट गया !!

भीतर से पुरव फुट – फुट के रोने लगा
गमनाक देख के जब वो हाल पूछ गया !!

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