तेरी सदा का है सदयों से इन्तेजार मुझे
तेरे लहू के समंदर जरा पुकार मुझे
मैं अपने घर को बुलंदी पे चढ के क्या देखूं
उरूजे फन! मेरी देहलीज पर उतार मुझे
उबलते देखी है सूरज से मैनें तारीकी
न रास आएगी यह सुबह जरनिगार मुझे
कहेगा दिल तो मैं पत्थर के पॉव चूमूंगा
जमान लाख करे आके संगसार मुझे
वह फ़ाका मस्त हूं जिस राह से गुजरता हूं
सलाम करता है आशोब रोजगार मुझे