Site icon Saavan

तेरे घर की गलियों में हम अक्सर भटका करते थे,

तेरे घर की गलियों में हम अक्सर भटका करते थे,

तेरी नज़रों से छिपकर हम तुझको घूरा करते थे,

साँझ सवेरे जब भी तू तितली बन मंडराती थी,

रात अँधेरे जुगनू बन हम तुझको ढूंढा करते थे,

एक तुम तकिये पर सर रख के चैन से सोया करती थी,

एक हम तुमसे मिलने को ख़्वाबों में जागा करते थे।।

राही (अंजाना)

Exit mobile version