तेरे शहर का मौसम मैंने अजीब देखा
लोगो का वह पैर एक अलग तहज़ीब देखा,
खरीद सके न मुझ से इंसा को वो एक कौड़ी-ऐ-खुसी देकर
तेरे शहर के लोगो को मैंने बहुत गरीब देखा,
हर तरफ सन्नाटा और गम का माहौल देखा
हर इंसा को तेरे शहर मैं मौत के करीब देखा,
कैसी किस्मत पाई उन सब ने सोचता हु मैं
मैंने उन सब की लकीरों को बदनसीब देखा,
रोते, बिलखते और दर्द से जूझते हुए थे सब
तेरे शहर का क़ानून बड़ा अजीब देखा,
जिन्दा तो थे वो सब मगर जिस्म मर चूका था
जैसे किसी मूर्दे को मैंने सजीव देखा
तेरे शहर का मौसम मैंने अजीब देखा
लोगो का वह पैर एक अलग तहज़ीब देखा……………….!!