तेरे ही आसपास कल्पना कवि की है,…..! (गीत)
तेरे ही आसपास कल्पना कवि की है,
कल्पना कवि की है, वंचना कवि की है,
वंचना कवि की है, वंदना कवि की है ……..!
तू स्फूर्ति है कवि की, प्रणयमूर्ती तू ही है,
तू ही कमी कवि की, और तू ही पूर्ति है
तेरे ही आसपास कल्पना कवि की है……!
कितने कवि जगाये तूने, उच्चपद चढा दिए,
कितने कवि बनाए, जो कि बन के व्यर्थ हो गए,
तू ही उदय कवि का, और तू ही अस्त है ….!
तूने खिलाये फूल ही जो कविह्रदय मे खिल रहे,
तूने कभी यही चमन उजाड़ दिया है,
तू आस है कवि की, और तू ही प्यास है,
तू ख़त्म हो सके न ऐसा उपन्यास है….!
तू मित्र है कवि की और तू ही शत्रू है,
तू वफ़ा बेवफाई का संगम पवित्र है,
तेरे ही आसपास कल्पना कवि की है……!
ये कवि का गीत है, और ये नारी का रूप है,
ये कवि का रूप है और ये नारी का गीत है,
भगवन ने जो रची है, कविता, तू ही तो है…!
तेरे ही आसपास कल्पना कवि की है,
कल्पना कवि की है, वंचना कवि की है,
वंचना कवि की है, वंदना कवि की है ……..!
तेरे ही आसपास कल्पना कवि की है ….!
” विश्वनन्द “