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तोहफा वो अनमोल था

तोहफा वो अनमोल था

आज शुकून भी मिल जाता,काश कोई झूठा ही सही पर कोई हमदर्द ही निकल जाता |
इसी चिंता से मेरा मन विकल था,पर उसकी आँखो में इतिहास ना कोई सरल था |
पर उसका होना ही मेरे वजूद का परितय था,
पर ये मेरे दर्द पर मेरा पहला विजय था |
कुछ ही पल मे दूर हो चला सारा शिकवा -गिला था |
ऐसा प्यार भरा तोहफा मुझे पहली बार मिला था |
तोहफा पाकर मै प्रसन्न थी,ना जाने कौन -सी जीती मैने जंग थी |
पर इतना मुझे समझ आ गया था और चारो ओर खुशियाँ ही खुशियाँ छा गया था |
पर मेरी माँ को मेरा तोहफा पाकर इठलाना भा गया था |
तोहफा वो अनमोल था,वक्त के कालचक्र का अजब रोल था |
तोहफा वो अनमोल था |तोहफा वो अनमोल था ||

प्रमाणपत्र

प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न कविता जिसका शीर्षक (तोहफा वो अनमोल था ) है, मौलिक व अप्रकाशित है तथा इसे “सावन काव्य प्रतियोगिता 2020) मे सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है और इसे “saavan Refining poetry ” की तमाम शर्ते मान्य है |

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