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थकी सी ज़िंदगी

कुछ थकी थकी सी, कुछ रुकी रुकी सी हो गई है ज़िंदगी,
जी रहे हम सब यहां, पर जीवन से कहीं दूर हो गई है जिंदगी,
क्यूं हम खुद के प्रतिद्वंदी हो गए है, क्यूं खुद से हमारा द्वन्द है,
जिधर देखता हूं, जहा देखता हूं, परेशान सी है हर ज़िंदगी,

चारो तरफ शोर है, मगर फिर भी खामोश सी हो गई है ज़िंदगी,
हर तरफ भीड़ है, फिर भी तन्हा सी हो गई है यह ज़िंदगी,
कभी दूसरों के लिए लडे थे,आज खुद के लिए भी लड़ना नापसंद है,
धुआ ही धुआ हूं चारो और, बिना सांसों के घुटती जा रही है ज़िंदगी,

वक्त बदल गया, जमाना बदल गया, बदल सी गई है ज़िंदगी,
कामयाबी की ख़्वाहिश थी, पर कीमत चुका रही है ज़िंदगी,
हम जी लेंगे इस माहौल में, क्या अगली पीढ़ी के लिए मुकम्मल प्रबंध है,
संभल जा ए इंसान आज भी वक्त है, रेत सी फिसल रही है जिंदगी,

जीने के लिए संघर्ष था कभी, आज संघर्ष कर रही है ज़िंदगी,
प्रकृति से जीवन मिलता है, आज प्रकृति मांग रही है ज़िंदगी,
क्या हमारी अगली पीढ़ी को सांसे मिलेंगी, सोचिए यदि आप अकलमंद है,
आत्ममंथन कीजिए और सोचिए ,क्या बस यूं ही बीत जाएगी ज़िंदगी,

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