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था वो गुलाब

था वो गुलाब के मानिंद
नज़र बस तेरी काटों पे गड़ी
मैंने भी महसूस किया कैक्टस को
नज़रे जो कभी फूलों पे पड़ी
राजेश’अरमान’

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