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दंगे

रात के छम सन्नाटे में,
एक भय की आहट है।
घबराहट की दस्तक है
कोई है का एहसास है
कल क्या होगा की सोच है ।

बीते कल जो जिंदगानिया शां त थी,
आज उनमें एक जलजला सा समाया है।
ऐसा क्यों है ????
हजारों जिंदगियां एक ही झटके में तबाह हो जाएंगी ।हजारों हंसते खेलते परिवारों के दीपक ,
दंगे की आग में झोंक दिए जाएंगे!!!
क्या यही है हमारी नई पीढ़ी बुद्धि हीन चेतना शून्य????
जिसके कंधों पर अनेकता में एकता वाले भारत देश का बोझ समाया है।
शर्म सार है यह धरती मां!!!
जिसने ऐसे बुद्धिहीनों को जन्म देकर ,
अपना बोझ ही बढ़ाया है

निमिषा सिंघल

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