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दरख्वास्त

सुनो, मुझे अपना बना लो
मन को तो लूभा चुके हो
अब मुझे खुद में छुपा लो

हूँ बिखरी और बहुत झल्ली सी
अपनी नज़रों में पगली सी
पर तुम्हारी नज़रों से जब खुद को देखा
लगने लगी भली भली सी
सुनो, इन नज़रों में
ता उम्र मुझको बसा लो
सुनो, मुझे अपना बना लो

मेरे हालातों से न तुमने मुझे आँका
न कोई प्रश्न किया न मुझको डाटा
ऊपरी आवरण से न परखा मुझको
तुमने भीतर मन में झाँका
सुनो, इस एहतराम के नज़राने
मुझे अपना हमराज़ बना लो
सुनो, मुझे अपना बना लो

तुम्हें देने को मेरे पास कुछ नहीं
इस एहसास की कीमत लगाऊँ इतनी तुच्छ नहीं
किसी और की प्रीत न भाये “दो नैनो ” को
अब इस से ज्यादा की ख्वाहिश नहीं
सुनो, कोई और न पुकार सके हमें
जहाँ पे , ऐसा मक़ाम दिला दो
सुनो, इस दरख्वास्त पर भी थोडा गौर फरमा लो

मुझे अपना बना लो
मन को तो लूभा चुके हो
अब मुझे खुद में छुपा लो….

अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”

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