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“दरद” भोजपुरी कविता

बहूत डरावना भयानक रात
देखनी हइ जब ओके आज
असपताल के एगो कोना मे
चिखत रहे लेके धिरे धिरे सास

दरद पिडा के रहे समूंदर
हर पल उठत रहे ओकरा अंदर
देख के ओके जि घबराये
का हाेइ ना समझ मे आये

डाकटर के उहवा एगो रहे टोली
जूझत रहे सब कोशिश से अउर देके गोली
मगर ओके रहे स्थिति एतना खराब
लेत रहे उ गिन गिन के सास

डाॅकटर भी नाकाम भइल
सुबह से लेके साझ भइल
सबसे नाता,रिसता अउर छुटल साथ
जाने कहवा उड के गइल जान

गेट पे दूगो लइका रहे खडियाइल
छर छर रेये अउर रहे छिछियाइल
पापा पापा कह खूबे चिललाइल
कहवा बाने भगवान समझ मे ना आइल

माई पे बितत रहे सढ साती
धिरे धिरे शांति ला ठोकत रहे छाति
मगर का करे ना दरद रोकाइल
घब से उहवा मुहकूडिया ढिमलाइल

उदय शंकर प्रसाद

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