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दार्शनिक

दार्शनिक
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जीवन मेरा दर्शन है,
कर्म मेरा पथ प्रदर्शक है,
मुड़ कर देखा बचपन को
जन्म से बच्चा दार्शनिक है,

उसमें गति मति थी,
प्रकृति उसके करीब थी,
था सब कुछ जन्म से ही
जैसे बालक खुद का निधान है,

जिज्ञासा से भरा था,
आश्चर्य में डूबा था,
उंगली पकड़ के चलना सीख रहा
पथ-पग से ताल मिला कर
संदेह के संग बढ़ रहा था,

सबके पास दर्शन है,
दर्शन का अर्थ देखना है,
कहते इसे फिलास सोफिया-
ज्ञान से प्रेम,
जिसका सारांश है,

दर्शन में-
ज्ञान विज्ञान है,
लौकिक-पारलौकिक
परमतत्व की पहचान है,
संसार के सब वाक्यों अर्थों का
दर्शन में ही सारांश है,

जग का सबसे बड़ा दर्शनशास्त्र,
बच्चों के बचपन में है,
जग का सबसे बड़ा दार्शनिक,
हर घर का बच्चा है,

जो आज बने हैं,
घर के दीवारों पर टंगे हैं,
जिन्हें पढ़कर दुनिया महान बने
उन्हें पढ़ाने वाले थे !

बालक के संवाद में,
है सौ सवाल उसके हाथ में,
बालक के सवाल में-
ना अंत और शुरुआत है,
भय विरोध दमन की चिंता नहीं,
क्या बालक महान दार्शनिक नहीं है ?

जो जाना नहीं,
राग- ताल- हाल -काल को,
सच बोला बिना देखे किसी के भाल को,
जिसे पथ का कोई ज्ञान नहीं,
जवाब दे दो छोड़ दो झूठी शान को,

सच बालक महान है,
सबके घर-घर दार्शनिक हैं,
है दर्शन का जन्म जिज्ञासा से अगर,
बच्चों से बड़ा जिज्ञासु जग में कौन है !!
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कवि-ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’
पता-खजुरी खुर्द कोरांव
जिला-प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

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