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“दिन भर अखबार लिए फिरता है”

दिन भर अखबार लिए फिरता है इक बच्चा
उसकी सुबह कब होती होगी,
उसकी शाम कब होती होगी,
शायद उसके लिए दोपहर न होती होगी,
क्योंकि एक अजब सी चमक थी,
उसकी आँखों में इतनी तपिश के बावजूद
जैसे कोई ख़्वाब हो जो उसे लगातार चला रहा था
कभी यहाँ कभी वहाँ।
कभी यहाँ कभी वहाँ।।
,
वही स्कूल से लौटते हुए बच्चे भी देखे मैंने,
चेहरे पे थकान भरी मुस्कराहट
घर पहुँचने की जल्दी भूख प्यास,
दूसरी तरफ़ उसी उम्र में चेहरे पे गंभीरता,
और कंधों पर ज़िम्मेदारी का एहसाह,
दिलाता वो बच्चा,
न जाने मुझसे कितना कुछ कह गया,
फिर मैं मंजिल की ओर चलने लगा,
जब कभी भी थकता हूँ तो याद आता है,
वो चेहरा जैसे सफर में बढ़ने को कह रहा हो,
और मैं चलता रहता हूँ चलता रहता हूँ।।
@@@@RK@@@@

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