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“दीपों की दिवाली है तो दीपों से मनाओ”

पटाखे ना जलाओ मित्र
दीपों को जलाओ
अपने मन के अन्धकार को मिटाओ
राम आये अवध में तो हे देशवासियों !
अपने क्षेत्र को दीपों से सजाकर
दीपावली मनाओ
पटाखे जलाने से होता है प्रदूषण
आतिशबाजी से ही क्या खुश होता है मन !
हर घर सजाओ प्यारे,
हर गली सजाओ
“दीपों की दिवाली है तो
दीपों से मनाओ”…

काव्यगत सौंदर्य और समाज में योगदान:-
यह कविता मैंने आतिशबाजी से हो रहे प्रदूषण को रोंकने के लिए लिखी है…
दीपावली का अर्थ आतिशबाजी करना नहीं वरन् प्रकाश फैलाना है
रामजी के आगमन पर प्रदूषण फैलाना भला कहाँ की समझदारी है??
पटाखे जलाने से तमाम प्रकार की दूषित गैसें
वायु में मिल जाती हैं जो सांस लेने पर हमारे फेफड़ों में प्रवेश करके हमारे शरीर को विविध प्रकार से नुकसान पहुंचाती हैं
साथ ही धमाके के साथ कुछ धूल के कण भी वायु में मिल जातें हैं जो हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं..
दीपावली प्रकाश का पर्व है जिसे लोग अपने स्टैंडर्ड का पर्व बना बैठे हैं और दिखावे की होड़ में लग गये हैं

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