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दुनिया के रंग

देखा है दुनिया को रंग बदलते।
मुंह में राम बगल में छुरा लिए चलते।
गैरों को मतलब कहां हैं हमसे ‘देव’,
यहां अपने ही अपनों को हैं छलते।

देवेश साखरे ‘देव’

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