हाथ मे डंडा, बदन पर धोती
ऐनक पहने रहते थे
दुबली पतली काया थी पर
देश प्रेम में रहते थे
दो ही शब्दों को ही लेकर
विजय पथ पर निकले थे
सत्य अहिंसा के ही मार्ग को
अपनाते, मनवाते थे
विदेशी वस्तु को त्याग कर
स्वदेशी ही अपनाते थे
बहिष्कार करते थे स्वयं भी
दूरसों से भी करवाते थे
एक के बाद एक, आंदोलन लेकर
सीना ताने निकलते थे
अपने साथ मे औरों में भी
देशप्रेम जगाते थे
ठान लिया था अपने मन मे
विदेशी बाहर निकालेंगे
अपने इस भारत को मिलकर
आजादी अवश्य दिलाएंगे
आज़ादी के लिए न जाने
कितने कष्टों को झेला था
लेकिन देश प्रेम की भक्ति ने
हर पल हिम्मत बाँधे रक्खा था
कमजोर भले ही काया थी पर
दृढ़ विश्वास में अडिग रहे
जो चाहा था किया उन्होंने
देश की खातिर अड़े रहे
दिला आज़ादी दिखा दिया फिर
हौसलों से उड़ान होती है
जैसी भी स्थिति हो फिर
एकता में शक्ति होती है।।